Phule Movie Review By Komal Nahata(Filminformation)
"अनंत नारायण महादेवन का निर्देशन बहुत साधारण है। फिल्म को डॉक्यू-ड्रामा शैली में बनाया गया है और यह आम दर्शकों को भी पसंद नहीं आएगी। रोहन रोहन का संगीत मधुर है, लेकिन लोकप्रिय किस्म का नहीं है। कौसर मुनीर ( साथी ) और सरोश आसिफ ( धुन लगी ) के गीत वजनदार हैं। रोहन रोहन का बैकग्राउंड स्कोर औसत है। सुनीता राडिया की सिनेमैटोग्राफी काफी अच्छी है। संतोष फुटाने की प्रोडक्शन डिजाइनिंग ठीक है। रौनक फडनीस का संपादन काफी शार्प है। कुल मिलाकर, फुले की व्यावसायिक संभावनाएं धूमिल हैं क्योंकि कई पाठकों को यह इतिहास की किताब की तरह नीरस और उबाऊ लगेगी।"
Phule Movie Review By Abhay(Times Now)
"प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने लीड रोल वाली फिल्म 'फुले' एक जबरदस्त फिल्म है, जिसमें प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने 19वीं सदी के समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले की कहानी को शानदार तरीके से पेश किया है। प्रतीक गांधी की ये फिल्म वन टाइम वॉच है। ये फिल्म आपके दिल और दिमाग दोनों को छू लेगी।"
Phule Movie Review By Pankaj Shukla(Amar Ujala)
"अभिनय के मामले में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने अपना सबकुछ इस फिल्म में झोंक देने की कोशिश की है। युवा ज्योतिबा के मुकाबले बुजुर्ग ज्योतिबा के किरदार में प्रतीक का काम प्रशंसनीय है। उनको अपनी एक खास मैनरिज्म का खतरा शुरू से रहा है, वह कुछ-कुछ पंकज त्रिपाठी वाली कमजोरी में भी अटके दिखते हैं जिसमें हर संवाद वह बस एक ही ढर्रे में बोल जाते हैं। हालांकि, जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है प्रतीक का अभिनय किरदार के साथ समरस होता जाता है। पत्रलेखा ने अपने चेहरे के साथ जो भी प्रयोग किए हैं, वे इस फिल्म के सहज प्रवाह में शुरुआती दृश्यों में बड़ी बाधा बनते हैं।"
Phule Movie Review By Upma Singh(NBT)
"निश्चित तौर पर 'फुले' का यह जीवन सफर अपने में बेहद प्रेरणादायी है, जिसे सह लेखक और निर्देशक अनंत महादेवन ने सिलसिलेवार ढंग से पर्दे पर उतारा है। फुले के बहाने वह कभी सामाजिक समरसता की पैरवी करते हैं, तो कभी पितृसत्तात्मक सोच पर चोट करते हैं। मगर वैसी धार नहीं पैदा कर पाते हैं, जो दर्शकों को झकझोर सके। यह फीचर फिल्म से अधिक डॉक्यूमेंट्री-ड्रामा स्टाइल में आगे बढ़ती है। साथ ही कई बार उपदेशात्मक भी लगती है। बात एक्टिंग की करें, तो प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने पूरी शिद्दत से ज्योतिबा और सावित्री के किरदारों को जिया है।"
Phule Movie Review By Jyotsna Rawat(Punjab Kesari)
"फुले एक ज़रूरी फिल्म है – समाज के लिए, सिनेमा के लिए और हर उस दर्शक के लिए जो यह जानना चाहता है कि असली बदलाव कैसे आते हैं। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे सिर्फ देखा नहीं, महसूस किया जाना चाहिए। इसमें मसाला नहीं है, लेकिन इसमें वो आत्मा है जो आज की बहुत-सी फिल्मों में खो चुकी है।"
Phule Movie Review By Sakshi Verma(India TV)
"फुले एक ऐसी फिल्म है जो निश्चित रूप से 19वीं सदी की बात करती है, लेकिन वर्तमान समय को भी आईना दिखाती है। फिल्म विचारोत्तेजक है, लेकिन साथ ही यह आपको उन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का एहसास कराती है, जिन्होंने हर तरह की आजादी के लिए बहुत कुछ सहा। भावनाओं, तर्क और दमदार अभिनय से भरपूर इस फिल्म में वह सब कुछ है जो सुनने की हिम्मत रखने वालों को देना चाहिए।"
Phule Movie Review By Amit Bhatia(ABP News)
"अनंत महादेवन ने फिल्म का डायरेक्शन किया है. अनंत कमाल के एक्टर हैं और उससे भी कमाल के डायरेक्टर साबित हो रहे हैं. उनकी पिछली फिल्म द स्टोरीटैलर भी कमाल थी और यहां भी वो ऐसा सिनेमा बना गए हैं जो याद रखा जाएगा, जो जरूरी था. इस फिल्म को उन्होंने बैलैंस तरीके से बनाया है. इतना ज्ञान नहीं दिया कि आप बोर हो जाएं. जहां जो जरूरी है वो कहा गया है और सही तरीके से कह गया है. अनंत ने ही मुअज्जम बेग के साथ मिलकर ये फिल्म लिखी है."
Phule Movie Review By Sonali Naik(TV9)
"‘फुले’ कोई ऐसी बायोपिक नहीं है, जिसमें फिल्मी मसाला हो. कुछ लोगों को ये बोरिंग भी लग सकती है, क्योंकि फिल्म में कोई तड़का नहीं है. एक तरफ प्रतीक गांधी ने ‘महात्मा ज्योतिबा फुले’ के किरदार में जान लगा दी है, तो दूसरी तरफ उनके सामने पत्रलेखा की ‘सावित्री बाई’ की एक्टिंग कम पड़ जाती है. लेकिन ये उनकी कहानी है, जो हमारे नेशनल हीरो रहे हैं, हालांकि उन्होंने क्या कुछ किया ये उन किताबों में सीमित है, जो आज की दुनिया में कोई पढ़ना नहीं चाहता. अब उनकी मौत के 135 साल बाद हिंदी भाषा में उनपर फिल्म बनी है और वो सभी को देखनी चाहिए."